होली का त्यौहार
होली के त्यौहार का हमारे भारत वर्ष में बहुत महत्व है। यह त्यौहार हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह की पूर्णिमा को मनाया जाता हैं। होली का त्यौहार हमेशा बसंत ऋतु में आता है और अपने साथ एक नई उमंग एक नया जोश लेकर आता है।
ब्रज और मथुरा की होली
अगर होली के त्यौहार की बात हो और ब्रज और मथुरा की होली उसमे शामिल न हो ये तो हो ही नहीं सकता। यहॉ एक माह पहले से ही होली खेलना शुरू हो जाता है और दूर-दूर से लोग इस होली में शामिल होने आते है। यहाँ सभी बड़े हर्षोउल्लास से एक दूसरे पर रंग-गुलाल डालते हैं और खुशी से झूमते हैं। तो कही पुरुष, महिलाओं पर पानी और रंग फेंकते है और महिलाये, पुरुषो की लाठी और कपडे के बने कोड़ो से उनकी पिटाई करती हैं।
होलिका का दहन
होली का पर्व हम मुखयत: २ दिन मानते है जिसमे पहले दिन होली का दहन किया जाता है और दूसरे दिन (जिसे दुलैण्डी भी कहा जाता है) सभी रंग - गुलाल से खेलते हैं और खुशियाँ मानते हैं। होली दहन वाले दिन सुबह से ही लोग तैयारियों में लग जाते हैं। सभी के घरो में अच्छे -अच्छे पकवान बनते है। गोबर के बने उपलों और और लकड़ियों से होलिका बनायीं जाती है और संध्या के समय सभी होलिका को पकवान का भोग लगते हैं और विदिवत तरीके से पूजा की जाती हैं और होलिका का दहन कर दिया जाता है।
दुलैण्डी/ रंगो की होली
होलिका दहन के अगले दिन सुबह से ही बच्चों का उत्साह देखते ही बनता है। बच्चे अपनी रंग बिरंगी पिचकारियों से और गुब्बारे में पानी भरकर एक दूसरे पर डालना शुरू कर देते हैं और एक शोर हमें चारो तरफ सुनाई देता है :
" बुरा न मानो होली है हम बच्चों की रंगो वाली होली है
"
इस दिन सभी अपने गिले-शिकवे भूलकर एक दूसरे के घर जाते हैं, रंग-गुलाल लगाते हैं और खुशियाँ बाँटते हैं।
यह कार्यक्रम पूरा दिन चलता है और फिर सभी नहाकर नए कपडे पहनते हैं और अपने अपने रिश्तेदारो से मिलते हैं मिठाई खाते हैं और विश्राम करते हैं।
होली एक कुप्रथा
जहाँ होली को सभी इतनी धूमधाम से मानते हैं वही कुछ लोग इस पर्व की आड़ में नशा करते हैं, सड़को पर घूमते हैं, दुसरो को भला-बुरा कहते हैं और झगड़ा करते हैं। बहुत बार तो नशा करके वाहन चलाते हैं और दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं। पहले के समय में जहा प्राक्रतिक रंग-गुलाल का इस्तेमाल किया जाता था वही उनकी जगह आजकल के केमिकल वाले रंगो ने ले ली है जो हमारी त्वचा के साथ-साथ हमारी आँखों के लिए भी बहुत हानिकारक हैं। इसी के परिणामसवरुप बहुत से लोग होली को एक कुप्रथा भी मानने लगे हैं।
होली खेलने के लिए सावधानियाँ
हम सभी को चाहिए की हम अपने नई पीढ़ी का अपने पर्वो और अपनी संस्कृति के प्रति सही से मार्गदर्शन करे।
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पानी का इस्तेमाल होली के खेलने लिए कम से कम करे।
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जितना हो सके होली में साफ़ पानी का ही इस्तेमाल करे।
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होली में गंदे पानी, कीचड़ और गोबर का इस्तेमाल बिलकुल ना करे।
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रंग-गुलाल से ही होली खेले।
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प्राकर्तिक रंग-गुलाल का इस्तेमाल करे।
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रंगो का इस्तेमाल करते समय ध्यान रखे की किसी के आँख या नाक में ना जाए, ये बहुत हानिकारक हो सकता है।
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जरा सी सावधानी हमारे त्यौहार को ख़राब होने से बचा सकती है।
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